मूलभूत सिद्धांत

“गवेषणा मानवोत्थान पर्यावरण तथा स्वास्थ्य जागरूकता समिति (पं. संख्या 06/09/01/13885/21)” के 24 उद्देश्यों में एक जीवन दर्शन समाया हुआ है। इस जीवन दर्शन को अपनाये बिना आधुनिक व प्रगतिशील सभ्यता का निर्माण नहीं किया जा सकता।
गवेषणा में निहित सिद्धांतों का उल्लेख हम निम्नानुसार कर सकते है –

  • अधिभौतिक व अधिजैविक मानवीय अस्तित्व को मान्य करना- गवेषणा की मानव जीवन के विषय में यह मूल मान्यता है कि मानव केवल भौतिक शरीर या जैविक प्राणी नहीं है। मनुष्य ने “मानव होने के गौरव बोध” का विकास किया है। मानव होने के गौरव बोध को हटाकर हम मनुष्य होने की कल्पना नहीं कर सकते, क्‍योकि गौरव बोध के आभाव में मनुष्‍य अपने भीतर सत्‍यान्‍वेषी, उत्तरदायित्‍व व नैतिक चेतना का विकास नहीं कर सकता।
  • लौकिक सत्ता को मान्य नहीं करना- मानव के अधिभौतिक व अधिजैविक अस्तित्व की रचना किसी अलौकिक सत्ता द्वारा नहीं की गई है बल्कि अपने अतिभौतिक व अतिजैविक अस्तित्व या “मानव होने के गौरव बोध” का विकास एवं सृजन स्वयं मनुष्य ने किया है। अलौकिक सत्ता की स्‍वीकार्यता मानव गरिमा एवं उत्तरदायित्‍व बोध मे एक अपूर्णीय क्षति है।
  • मानवगरिमा उत्तरदायित्‍व बोध एवं सृजनात्‍मकता मानवीय अस्तित्व का मौलिक घटक है- मानवीय अस्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण घटक उसकी गरिमा, उत्तरदायित्‍व बोध एवं सृजनात्‍मकता है। हम उसी अंश तक मानव हैं जिस अंश तक हम गरिमा, उत्तरदायित्‍व बोध एवं सृजनात्‍मकता को धारण कर सकते हैं।
  • आर्थिक स्‍वतंत्रता मानव गरिमा का अनिवार्य अंश है – गवेषणा अपने लौकिक जीवन दृष्टि के समर्थन द्वारा आर्थिक स्‍वतंत्रता का समर्थन करती है जो गरिमापूर्ण व उत्तरदायित्‍वबोध पूर्ण जीवन के विकास के लिये अनिवार्य है।
  • मानव में सुधार संभव – गवेषणा का मूल मत है कि शिक्षा, प्रशिक्षण एवं आत्मचेतना के विकास से व्यक्ति के व्यक्तित्व में सुधार संभव है | व्यक्ति को परंपरावादी रुढ़ विचारधारा से प्रगतिशील विचारधारा में रुपांतरित करना संभव है।
  • मानवीय ऐक्यता- पृथ्वी के सभी मानव चाहे वे किसी भी जाति धर्म लिंग रंग व क्षेत्र के हों, चाहे उनकी शारीरिक बनावट कैसी भी हो | मानव गरिमा की ये पहली मांग है कि सभी मानव एक हैं, समान हैं। सम्मान व गरिमा में सभी मनुष्य बराबर हैं। इस सिद्धांत के आधार पर गवेषणा ने  ‘’जीरो डिस्क्रिमिनेशन’’ का सिद्धांत स्‍वीकार किया है।
  • चराचर सम्वेदी सहअस्तित्व- मानव होने के असीमित गौरव बोध के बाद भी ये वास्तविकता है कि सृष्टि में मानव अकेला नहीं है, अकेला रह भी नहीं सकता। चराचर सृष्टि के सभी घटक अपने जीवन व पोषण के लिए एक दूसरे पर निर्भर हैं। अन्य के अस्तित्व से ही मानव का अस्तित्व है। इस परस्पर अस्तित्विक निर्भरता के बावजूद मानव होने के गौरव बोध का अनिवार्य घटक मानव की सम्वेदनशीलता है। चराचर सृष्टि के परस्पर निर्भर होने की अनिवार्यता के बावजूद संवेदनशीलता का स्रोत मानव होने का गौरव बोध है, निर्भरता नहीं।
  • उचित साधन – मानव होने के गौरव बोध की अन्य महत्वपूर्ण माँग यह है कि हम अनुचित, हीन या किसी भी स्तर के साधनों का प्रयोग अपने लक्ष्य प्राप्ति में नहीं कर सकते। हम अपने ध्येय को किसी भी अनुचित साधन से प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि हम मानव हैं और हमारी गरिमा है| उचित साधनों के अलावा अनुचित साधन के उपयोग से हमारी गरिमा की क्षति होगी।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण- वैज्ञानिक दृष्टिकोण का आशय सोच की उस प्रविधि से है जो चली आ रहीं बातों पर विश्वास न करके प्रयोग व परीक्षण करके ही स्‍वीकार करता है। प्रयोग व परीक्षण में हमारे ज्ञान का स्वरूप लौकिक इन्द्रिय प्रत्यक्ष (या परिष्कृत माइक्रोस्कोप, टेलिस्कोप द्वारा ज्ञानेंद्रियों की बड़ी हुई क्षमता से प्रत्यक्षीकरण) होता है। आस्था, विश्वास, पवित्र पुस्तकों में लिखा गया तथा सम्मानित व्यक्तियों द्वारा सम्प्रेषित ज्ञान नहीं है।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण लौकिक है- वैज्ञानिक दृष्टिकोण ज्ञान के रूप में आकाश से नहीं उतरा है बल्कि ये”गवेषणा मानवोत्थान पर्यावरण तथा स्वास्थ्य जागरूकता समिति (पं. संख्या 06/09/01 /13885/21)” के बीज शब्द ‘गवेषणा’ से निष्पन्न है। गवेषणा के बीजशब्द ‘गौ’ का एक अर्थ ‘ज्ञानेंद्रियां’ भी होता है। इसलिए गवेषणा वह रिसर्च है जो ज्ञानेंद्रिय संवेदनों पर निर्भर हो जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण का भी मूल है।
  • आधुनिक सभ्यता व वैज्ञानिक दृष्टिकोण समानार्थी हैं- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही आधुनिक, भौतिक व वस्तुनिष्ठ सभ्यता का विकास सम्भव है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किसी भी स्थिति में अलौकिक सभ्यता विकसित नहीं हो सकती है, अर्थात् मनुष्‍य की सृजनात्‍मकता व प्रगतिशील सृजनात्‍मकतापूर्ण, प्रगतिशील व विकसित समाज का निर्माण वैज्ञानिक दृष्टिकोण के द्वारा ही किया जा सकता है।
  • जीरो डिस्क्रिमिनेशन- मानव होने के गौरव बोध की एक मांग भेदभाव मुक्त समाज की स्थापना है। इस उद्देश्‍य की पूर्ति हेतु गवेषणा जीरो ‘डिस्क्रिमिनेशन’ को अपना आदर्श के रुप में स्‍वीकार करती है।
  • धर्म निरपेक्षता – वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अनिवार्य अंग धर्म निरपेक्षता है। धर्मनिरपेक्षता के मूलार्थ में लोगतांत्रिकता की भावना निहित है जो एक लोकतांत्रिक वैश्विक समाज के निर्माण हेतु अनिवार्य है। इसी कारण धर्म निरपेक्षता गवेषणा का एक महत्‍वपूर्ण आदर्श है।
  • संसाधनों पर अखिल मानवता का नैसर्गिक हक- प्राकृतिक व मानव निर्मित संसाधनों के उपयोग पर वर्तमान पीढ़ी का ही नहीं भविष्य की पीढ़ियों का भी हक़ है। इस उद्देश्‍य की पूर्ति मानव गौरव बोध निसृत उत्तरदायित्‍वबोध द्वारा ही संभव है।
  • वंचितों व कमजोरों का विशेषाधिकार- मानव होने के गौरव बोध का ये अनिवार्य परिणाम है कि प्राकृतिक व मानव निर्मित संसाधनों के तथा कौशल के उपयोग का विषेधाधिकार वंचितों व कमजोरों को मिलना चाहिए। गवेषणा अपने इस आदर्श के कार्यान्‍वन हेतु प्रतिबद्ध है।
  • असहमति का स्थान – मानव होने के गौरव बोध की यह प्राथमिक मांग है कि वैचारिक व कार्यकारी असहमति का सम्मान किया जाना चाहिए। जिसमें गवेषणा वाल्‍टेयर के इस कथन ‘’हो सकता है कि मैं आपके विचारों से सहमत न हो पांऊ लेकिन विचार प्रकट करने के अपने अधिकार की रक्षा जरुर करना।
  • मानव का संकल्प स्वातंत्र्य- सभ्यता के प्रमुख आदर्श न्याय व नैतिक चेतना के विकास की यह अनिवार्य मांग है कि मनुष्य को संकल्प की व उसके अनुप्रयोग की असीमित स्वतंत्रता है, जिसका अनुप्रयोग चुनाव करने, निर्णय लेने व कर्म करने के स्‍वतंत्रता के रुप में अभिव्‍यक्‍त होता है। संकल्‍प स्‍वातंत्र्य के आभाव में नैतिक व उत्तरदायित्‍वबोध की चेतना का विकास नहीं हो सकता। इसीलिए संकल्प स्वातंत्र्य गवेषणा का आदर्श है।
  • पारिवारिकता- एवं रिश्‍तों के प्रति संवेदनशीलता और उत्तरदायित्‍व की भावना का विकास करना गवेषणा का आदर्श है।
  • बच्चों के विशेषाधिकार – बच्चे इंसानियत के भविष्य की धरोहर हैं। गवेषणा का उद्देश्य बच्चों के बचपन को बचाना तथा उन्हें समृद्ध व गरिमापूर्ण भविष्य देना है। गवेषणा इस आदर्श को स्‍वीकार करती है कि वर्तमान पीढ़ी बच्‍चों के ऊपर अपने आदर्शों व अपेक्षाओं को नहीं थोपे।
  • महिला गरिमा – मातायें मातृत्व, करुणा, वात्सल्य के गुणों का प्रतीक हैं। गवेषणा का आदर्श महिला गरिमा के सम्‍मान को बनाये रखना व बढ़ाना है, जिसके लिये गवेषणा पितृसत्तात्‍मक सामाजिक मनोवृत्ति मे बदलाव के लिये प्रतिबद्ध है।
  • पशुओं तथा मूक प्राणियों के हितों की स्वीकृति- पशु पक्षी तथा अन्य कीट पतंगे प्रकृति में निहित पर्यावरण तंत्र के अनिवार्य घटक हैं । पर्यावरण संतुलन से अधिक मानव गरिमा का यह उत्तरदायित्‍व है कि हम इनकी सुरक्षा व संरक्षण उनके प्राकृतिक आवास में ही सुनिश्चित करें।
  • चराचर सम्वेदी पर्यावरण नागरिकता- जब तक विश्व राज्यों, खंडों, धर्मो आदि के हिस्सो में बंटा रहेगा तब तक समस्यायें बनी रहेंगीं। गवेषणा की मूल मान्यता है कि चराचर संवेदी व पर्यावरण नागरिकता द्वारा समस्त अंर्तद्वंदात्मक सीमाओं का विघटन कर समस्त प्रकृति को एकसूत्र में बांधा जा सकता है।