स्थापना वर्ष २०२१
गवेषणा
मानवोत्थान पर्यावरण तथा स्वास्थ्य जागरूकता समिति
हम क्या करते हैं ?
गवेषणा संगठन के रूप में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व जीरो-डिस्क्रिमिनेशन युक्त, आधुनिक व उत्तर-आधुनिक जीवन मूल्यों पर आधारित चराचर-सम्वेदी वैश्विक मानव सभ्यता के विकास के लिए काम करती है। समाज में स्वास्थ्य एवं सामाजिक सोहार्द्र के साधन के रूप में अंगदान को सामान्य स्वीकार्यता का भाव बनाना चाहते हैं। हमारी आदर्श सभ्यता में बच्चों, महिलाओं, आगामी पीढ़ियों, वंचितों कमजोरों जीवों-वनस्पतियों व प्रकृति को संरक्षण व विकास के विशेषाधिकार होंगे। ऐसी सभ्यता के विकास के उपाय भी लौकिक व वैज्ञानिक शोध पर आधारित, शिक्षा-प्रशिक्षण, जागरूकता व प्रेरणादायक, सृजनात्मक कार्य संपन्न किये जाते हैं जो एक मानवतावादी, वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त प्रगतिशील सभ्यता के निर्माण व विकास के लिए अनिवार्य है।
हमारा मिशन
मूलत: हमारा मिशन सामाजिक बदलाव है। हम परंपरागत समाज को आधुनिक, चराचर संवेदी तथा मानव गरिमायुक्त स्वस्थ समाज में बदलना चाहते हैं। हम जातियों – उपजातियों में अस्पृश्यता के स्तर तक बँटे हुये समाज को ‘जीरो-डिस्क्रिमिनेशन’ युक्त संवेदनशील समाज बनाना चाहते हैं। हम सामाजिक बदलाव के उपकरण के रुप में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, शिक्षा प्रशिक्षण और जागरुकता का उपयोग करना चाहते हैं।
हमारा विज़न
गवेषणा मानवोत्थान पर्यावरण तथा स्वास्थ्य जागरूकता समिति का विज़न स्पष्टत: वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त, चराचर केंद्रित, मानव गरिमा, चराचर सम्वेदी पर्यावरण नागरिकता, धर्मनिर्पेक्षता, वंचितों के विशेषाधिकार, बहुसंस्कृतिवाद, जाति – मुक्त व जीरो-डिस्क्रिमिनेशन आदि आधुनिक व उत्तर-आधुनिक जीवन मूल्यों पर आधारित प्रगतिशील व सृजनात्मक समाज का निर्माण करना है।
हम कौन हैं ?
“गवेषणा” पंजीकृत संस्था “गवेषणा मानवोत्थान पर्यावरण तथा स्वास्थ्य जागरूकता समिति (पं. संख्या 06/09/01/13885/21) का संक्षिप्त नाम ही नहीं है, आधुनिक व उत्तरआधुनिक जीवन मूल्यों को जीने वालों का सम्पूर्ण जीवन दर्शन भी है। हमारे जीवन दर्शन का सम्पूर्ण आशय इसी एक शब्द “गवेषणा” में निहित है। गवेषणा शब्द अनुसंधान, शोध, खोज, रिसर्च के रूप में रूढ़ हो चुका है। इस रूढ़ अर्थ को हम पूर्णतः स्वीकार करते है । यदि हमारे मुख्य मुख्य पंजीकृत उद्देश्यों 2, 3, 4, 5, 15, 16, 17, 18, 19, 20, 21 व 24 आदि को देखा जाये तो उनकी उपलब्धि एक वैज्ञानिक शोध प्रविधि को अपनाए बिना व शोध कार्य किये बिना नहीं हो सकती ।
संस्कृत शब्द ‘गवेषणा’ गाय की खोज से निकला है। हमारे समाज कि प्रारंभिक अवस्था में परिवार की एक मात्र सम्पति गाय थी। गाय धन का एक स्वरूप होने के साथ ही एक कालखंड में विनियम का माध्यम भी रही। इस प्रकार पशुपालन व कृषि ही नहीं व्यापार – वाणिज्य का विकास भी गाय से हुआ। अतः गाय की खोज का आशय “समाज के धन व उनके कारणों की खोज रहा है।” यहाँ यह स्पष्ट है कि “गवेषणा मानवोत्थान पर्यावरण तथा स्वास्थ्य जागरूकता समिति (पं. संख्या 06/09/01/13885/21) “में भी ‘गवेषणा’ का अर्थ लौकिक और भौतिक सम्पति या सम्पन्नता सम्बन्धी रिसर्च से है। हमारा कोई अलौकिक उद्देश्य नहीं हो सकता है। इसी बात को 1776 में ब्रिटिश अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने समझा और वे “राष्ट्रों की संपदा और उसके कारणों की खोज” विषयक शोध कार्य करके अर्थशास्त्र के पितामह हो गए। जबकि गवेषणा के नाम से हमारे परिवार आदिम युग से यही कर रहे हैं।
हमारे उद्देश्य
1. समस्त प्रकार की शिक्षा, स्कूल शिक्षा, (कॉलेज) उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा, चिकित्सा/सह चिकित्सीय शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं व्यवसायिक शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार व विकास करना (शासन व संबंधित विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त कर)।
2. मानव जीवन की गुणवत्ता एवं उत्कृष्ट जीवन मूल्यों संबंधी शोध, समाज में लागू करने हेतु प्रयोग करना।
3. पर्यावरण एवं स्वास्थ्य स्थिति पर शोध सर्वे एवं रिपोर्ट तैयार करना तथा सुधार से उपाय करना।
4. उत्कृष्ट जीवन मूल्यों पर्यावरण संरक्षण एवं शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का प्रचार-प्रसार करना एवं लोगों को सहायता उपलब्ध कराना।
हमारे प्रयास
गवेषणा संवाद प्रोग्राम
गवेषणा संवाद प्रोग्राम की शुरुआत गवेषणा ज्ञान संवाद के अंतर्गत की गई है। इसमें प्रतिष्ठित विषय विशेषज्ञों और जिज्ञासु छात्रों तथा रुचिवानों के बीच संवाद स्थापित करके समस्याओं के समाधान हेतु बहुआयामी समीक्षात्मक दृष्टिकोण को विकसित किया जाता है। इसका एक अन्य उद्देश्य छात्रों में संचार कौशल का विकास करना भी है।
जीवन जागृति अभियान
जीवन जाग्रति अभियान की शुरुआत मनुष्य में अंतर्निहित सामर्थ्य को सक्रिय एवं उसकी पहचान को ध्यान में रखते हुये किया गया है। जिससे बच्चों मे ध्यानाग्र क्षमता, सीखने की क्षमता व स्वयं के प्रति आंतरिक समझ विकसित करने के उद्देश्य से किया गया है।
जिज्ञासा वाचनालय
जिज्ञासा वाचनालय 14 मई 2021 को गवेषणा मानवोत्थान, पर्यावरण तथा स्वास्थ्य जागरुकता समिति के वैज्ञानिक दृष्टिकोण समाज के निर्माण संबंधी पंचम उद्देश्य की पूर्ति हेतु किया गया । स्थापना के प्रारंभ से जिज्ञासा ने संस्था के तहत स्वायित्व मिशन के रूप में कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। जिज्ञासा द्वारा छात्रों को केवल अध्ययन मात्र की सुविधा ही नहीं प्रदान की अपितु उनमें सम्यक कौशल के विकास का प्रबंध भी किया गया। जिज्ञासा के शुरुआत से ही विशेष अवसरों पर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित करने वाले जीवन मूल्यों, संविधान में निहित जीवन मूल्यों एवं मानव गरिमा पर व्यापक परिचर्चायें आयोजित की गईं, जिससे छात्रों के संप्रेषण क्षमता और व्यक्तित्व में अभूतपूर्व बदलाव अनुभव किया गया। वर्तमान में जिज्ञासा व्यापक संसाधनों के साथ उद्देश्य पूर्ति में संलग्न है।
मूलभूत सिद्धांत
“गवेषणा मानवोत्थान पर्यावरण तथा स्वास्थ्य जागरूकता समिति (पं. संख्या 06/09/01/13885/21)” के 24 उद्देश्यों में एक जीवन दर्शन समाया हुआ है। इस जीवन दर्शन को अपनाये बिना आधुनिक व प्रगतिशील सभ्यता का निर्माण नहीं किया जा सकता।
गवेषणा में निहित सिद्धांतों का उल्लेख हम निम्नानुसार कर सकते है – अधिभौतिक व अधिजैविक मानवीय अस्तित्व को मान्य करना। गवेषणा की मानव जीवन के विषय में यह मूल मान्यता है कि मानव केवल भौतिक शरीर या जैविक प्राणी नहीं है। मनुष्य ने “मानव होने के गौरव बोध” का विकास किया है। मानव होने के गौरव बोध को हटाकर हम मनुष्य होने की कल्पना नहीं कर सकते, क्योकि गौरव बोध के आभाव में मनुष्य अपने भीतर सत्यान्वेषी, उत्तरदायित्व व नैतिक चेतना का विकास नहीं कर सकता।
अध्यक्षीय संदेश
मनोहर पुत्र गोपीबाई : अध्यक्ष (गवेषणा)
गवेषणाः स्वपोषी सभ्यता का मार्ग
गैर सरकारी स्वायत्त संस्था “गवेषणा मानवोत्थान पर्यावरण तथा स्वास्थ्य जागरूकता समिति (पंजीयन संख्या 06/09/01/13885 / 21 ) ” का बीजशब्द ‘गवेषणा’ सामान्यतः चार अर्थों के शोधमार्ग (4-lane highway) को अभिव्यक्त करता है। पहला अर्थ लौकिक “धनधान्य के रूपक गाय की खोज” के रूप में, दूसरा अर्थ ज्ञानेंद्रियों के सम्वेदी प्रत्यक्ष ज्ञान के रूप में, तीसरा अर्थ मानव की मूलप्रवृति ‘वित्तेषणा’ के घटक के रूप में तथा शोध या खोज के रूप में चौथा अर्थ | यह स्पष्ट है कि “वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लौकिक सम्पन्नता की खोज” में ये चारों शामिल हैं। लौकिक सम्पन्नता जब तक स्थाई न हो उसका कोई मूल्य नहीं है, वह यदि मानव गरिमा की कीमत पर हो तो निश्चित ही त्याज्य होगी। इस कारण एक ‘संस्था के उद्देश्यों में व्याप्त आत्मा’ के रूप में जब हम ‘गवेषणा’ शब्द का उपयोग करते हैं तो गवेषणा का आशय वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर निर्भर उन प्रविधियों से है जिनके द्वारा लौकिक, चराचर – सम्वेदी, गरिमापूर्ण व सहअस्तित्व पूर्ण, आधुनिक एवं उत्तर आधुनिक उत्कृष्ट जीवन मूल्यों पर आधारित, सस्टेनेबिल, बहुलवादी, वंचितों व कमजोरों के विशेषाधिकार व असहमति का आदर करने वाली मानव सभ्यता का विकास किया जा सके।
सचिव संदेश
रमेश पुत्र गोपी बाई – सचिव (गवेषणा)
गवेषणा के मूल में मानव गरिमा का बोध अंतर्निहित है अर्थात् मानव ही किसी समाज या संस्कृति की मौलिक इकाई का है । मानव समाज के विकास में अनेक सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों की अनिवार्य व महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इस अर्थ में मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिसके शुभ-अशुभ, उचित-अनुचित, वर्णीय- त्याज्य का निर्धारण भी उनके सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों द्वारा निर्धारित होता है। भारत एक ऐसा देश है जहां विभिन्न प्रकार की संस्कृतियां जीवित है अत: गवेषणा सांस्कृतिक सहिष्णुता एवं लोकतांत्रिक भावना को बढ़ावा देते हुये बहुसंस्कृतिवाद का समर्थन करती है। समाज एवं संस्कृति एक गतिशील तंत्र हैं जिसकी गतिशीलता एवं विकास उसके अंतर्निहित मूल्यों द्वारा निर्धारित व निर्देशित होती है। किसी भी संस्कृति एवं समाज का विकास समय के सापेक्ष उनके मूल्यों के मूल्यांतरण पर निर्भर करता है। अर्थात् जो समाज व संस्कृति मानवोत्थान के उन्नयन हेतु संक्षम होता है वही समाज एवं संस्कृति एक गतिशील समाज का निर्माण कर सकता है। हम सब देखते हैं कि कुछ रूणीवादी, अंधविश्वास, पित्रसत्तात्मक, भेद-भाव के कारण सामाजिक असमानता उत्पन्न होती है जिसके परिणामस्वरुप मानव गरिमा का अपूर्णीय विघटन होता है। जो किसी भी सभ्यता व संस्कृति के विकास में बाधक है। जिसके समाधान हेतु गवेषणा वैज्ञानिक दृष्टि को अपनाता एवं अनिवार्य मानता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिये गवेषणा संवाद प्रोग्राम प्रतिमाह आयोजित किया जाता है इसी प्रकार पित्रसत्तात्मक, जातिगत भेद मनोवृत्ति के निवारण स्वरुप गवेषणा अपने निजी पहचान के रुप में जाति व पिता के नाम के स्थान पर मां के नाम उल्लेख का समर्थन व अपील करती है इसी प्रकार ‘मैं’ जो ‘अहं’ का द्योतक है, के स्थान पर ‘हम’ शब्द के उपयोग करने पर जोर देता है।
अब तक के प्रयासों की झलक
सहभागी बनें
लंबी यात्राओं की शुरुआत, छोटे कदमों से ही होती है। मानव गरिमा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, पर्यावरणीय नागरिकता और चराचर केंद्रित जीवन शैली की इस महा यात्रा के सहयात्रियों का स्वागत है। हमारे साथ आएं और हमारे स्वयंसेवक बनें।